नई पुस्तकें >> गंदी बात गंदी बातक्षितिज रॉय
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
एक लड़का था - कुछ लोफर, लफुआ, दीवाना-सा। जिसका दिल था नए रैपर में वही पुरान - शहीदाना। शहर पटना पूरा अपना लगे उसे। लड़की थी अलबेली-सी, सोचने का कारखाना, हिम्मत की एनीटाइम लोडेड गन जैसी, पुरानी जीन्स और एकदम नया गाना। दिल्ली शहर में मौसम था अन्ना आन्दोलन का, चुनाव के घुमड़ रहे थे बादल। डेजी आई पढ़ने एलएसआर में। बन गई ड्रमर। गोल्डन आया डेजी के पीछे बावला। बन गया ड्राइवर। दोनों थे खालिस गैर राजनीतिक युवा। पढ़िए उन्हीं के घोर राजनीतिक रोमांस की दिलचस्प दास्तां, जिसमें उनकी निजता में शहर, समाज और परिस्थितियाँ दे रही हैं बराबरी से दखल... जहाँ कुछ भी नहीं है निश्चित और अनिश्चित ही है उनका सबसे बड़ा रोमांस... जिसे कहते हैं सब गंदी बात, क्या होती है वाकई वह गंदी-सी कोई बात।
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